Thursday, February 25, 2021

*दलित हिन्दू का सच*

 *दलित हिन्दू का सच*


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हां मैं हूं दलित हिन्दू

हमेशा दलने के लिए

पिटने के लिए

मरने के लिए

गाली खाने के लिए

बेजत  होने के लिए

काम आता हूं......... क्योंकि 

मैं दलित हिन्दू हूं।

सदियों से जबरदस्ती से हिन्दू बना हुआ हूं

जबकि.....

वो नहीं बैठने देते पास

वो नहीं कहने देते बात

वो नहीं जानें देते मंदिर

वो नहीं पढ़ने देते स्कूल

वो नहीं पहनने देते नये कपड़े

वो नहीं मनाने देते खुशीयां

फिर भी गिनती में रहा हूं शामिल

मैं दलित हिन्दू हूं.......।

मेरे छूने से हो जातें हैं ये अपवित्र

मेरे छूने से हो जातें हैं मंदिर मैले

जिन्हें धुलवाया जाता है पशुओं के मल मूत्र से

मैंने भी स्वयं को बना लिया ढीट

और बेशर्म

और करता रहा वहीं काम जिसके करने से होता रहा अपमानित कदम- कदम पर।

मगर क्या अब भी जरूरत है मुझे दलित हिन्दू बने रहने की ...?

क्या मैं बौद्ध से फिर बौद्ध नहीं बन सकता ...?

कब तक ...... महज़

वोट डालने, 

मंदिर बचाने ,

गाय बचाने की लड़ाई में मरने को शामिल होकर गर्व महसूस करते रहोगे।

मुझे किसी भी ग्रंथ , उपनिषद,

वेद......पुराण में हिन्दू नहीं माना

जानवर भी आजाद थे

 अपनी जिंदगी जीने के लिए

........ मगर हम बंदिशों में कैद 

हमारे अधिकार किसने छीने

हमारी बहन- बेटियों को किसने लूटा

हमारे आगे मटका और पीछे झाड़ू किसने बांधी

..........और अब कौन लोग हैं

जो तोड़ रहे हैं हमारे मसीहा की प्रतिमाएं

खत्म करा रहे हैं आरक्षण

जला रहे हैं संविधान

और दे रहे हैं ऊंना,हाथरस, जैसी घटनाओं को अंजाम 

क्या ये कार्य मुस्लिम कर रहे हैं...?

क्या ये अत्याचार इसाई करा रहे हैं .....?

कहीं सरदार तो ये काम नहीं करा रहे .....?

या अंग्रेजी सरकार का है ये फरमान ....?

इन सभी सवालों का एक ही जबाव है ........ नहीं।

फिर कौन है .........?

.............केवल हिन्दू।।

तो क्या अब भी दलित हिन्दू बनकर जान पूछकर गुलामी की बेड़ियां पहनकर खुद को नीच,अछूत, ढेड़,डोम, गंवार, हरिजन जैसे शब्दों से अपमानित होना चाहते हो .....?

छोड़ क्यूं नहीं देते वो धर्म

जिसे तुम्हारे मसीहा ने छोड़ दिया

जो तुम्हें कभी सम्मान दे ही नहीं सकता

दिल से कभी लगा ही नहीं सकता

अपने पास बिठा ही नहीं सकता

मैं अब दलित हिन्दू नहीं हूं

आप कब तक 

दलित हिन्दू बनकर रहोगे.......

बोलो .........??? 

आज तुम किसी के दबाव में नहीं

अपने स्वार्थ और स्वाद में 

जबरदस्ती के हिन्दू बने हुए हो

यही आपके शोषण का सबसे बड़ा कारण है.......सोचना ....??

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जनकवि/बेखौफ शायर

डॉ. नरेश सागर

24/02/21

Monday, February 15, 2021

*आओ प्यार की पैंग बढ़ाएं*

 *आओ प्यार की पैंग बढ़ाएं*


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कब से तुमको सोच रहा हूं।

 कब से तुमको देख रहा हूं 

जाने तुम कहां खोई हुई हो

जाने कितना सोई हुई हो 

कब से मैं आवाज दे रहा

 तुम हो कि सुनती ही नहीं हो

 देखो मैंने गीत लिखा है 

देखो मैंने क्या लिखा है 

एक तस्वीर बनाई है मैंने

 देखो किसका रंग चढ़ा है

 आओ प्रिय आ भी जाओ

 मौसम कितना खिला-खिला है

 सुना है बसंत आ गया है

 हम दोनों में क्या शिकवा है

 आओ प्रिय हम भी मिल जाए

 आओ प्रिय हम घुल मिल जाए

 आओ प्रिय कुछ बातें कर ले

 आओ प्रिय मुलाकातें कर ले

 हम दुनिया को यह दिखलाएं

 आओ प्रिय हम प्यार सिखाएं

 आओ प्रिय हम प्यार सिखाएं

हम भी मिलकर गीत ये गाएं

आओ प्यार की पैंग बढ़ाएं।।

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मूल गीतकार/बेखौफ शायर

*डॉ. नरेश कुमार "सागर"*

15/02/2021

Saturday, February 13, 2021

हैप्पी वैलेंटाइन डे

 


गीत ...हैप्पी वैलेंटाइन डे

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प्यार पै भारी फाइन है,

देखो वैलेंटाइन है

जो भी मांझी संग पकड़ा,

डंडों का बदन पर साइन है………. देखो वैलेंटाइन है


घर से संभल -संभल जाना

बीवी को भी संग मत ले जाना

बैठे जो कहीं होटल में संग,

मीडिया की वहां लंबी लाइन है……….. देखो वैलेंटाइन है


फूल के बदले शूल मिले

राहों में जो किसी से पेच लड़े

मोहब्बत का नशा उतरे नीचे,

खाकी का गुस्सा टाईन है ……………….देखो वैलेंटाइन है


13 में मिलो 15 में मिलो

14 में s.m.s. युद्ध करो

यादों में गुम हो कर देखो

ख्वाबों की खुली वाइन है ……………….. देखो वैलेंटाइन है


हर तरफ खौफनाक पहरे

मिलने पर बादल है गहरे

सरे-राह मिलने पर कर्फ्यू ,

सपनों की खुली सब लाइन है …………….देखो वैलेंटाइन है


बजरंग दल यूं फूंकार रहा

पश्चिम को वो ललकार रहा

वैलेंटाइन पर रोक लगाने को

शिवसेना ने खोली ज्वाइन है ……………..देखो वैलेंटाइन है


इंकलाब करो मिलने वालों

खुलकर मिलो मिलने वालों

कह दो जमाने से तुम “सागर”

पी हमने इश्क की वाइन है ……………देखो वैलेंटाइन है!!

===मूल गीतकार … बेखौफ शायर

*डॉ. नरेश “सागर”*

9149087291

Saturday, February 6, 2021

*बिन पैसों के प्यार नहीं है*



 *बिन पैसों के प्यार नहीं है*

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बिन पैसों के प्यार नहीं है

 घर में भी व्यवहार नहीं है

 सब्जी- आटा दूर की बातें

 डिब्बे में अचार नहीं है 

बिन पैसों के प्यार नहीं है.........

 शिक्षा बीच में छूट गई है

 प्रेमिका भी रूठ गई है

 रोजगार की टांग टूट गई

 जीने का आधार नहीं है 

बिन पैसों के प्यार नहीं है ........

मां की बीमारी बढ़ गई है

 पापा की चिंता बढ़ गई है

 बीवी की साड़ी ना आयी 

उम्मीदें बेजार रही है

 बिन पैसों के प्यार नहीं है ........

मंदिर में प्रवेश नहीं है

 मस्जिद में दरवेश नहीं है

 खाली जेबें कोई ना पूछें

 कोई किसी का यार नहीं है

 बिन पैसों के प्यार नहीं है.........

 मानवता पैसों से तुलती

 इसी बात पर तुलसी झुलसी

 जो चाहे वो सब करवा लो

 पैसों में वो धार रही है 

बिन पैसों के प्यार नहीं है.........

 रिश्ते- नाते सब झूठे हैं

 बिन पैसों के सब रूठे हैं

 बात कोई ना करता उससे

 हालत जिसकी बेजार रही है

 बिन पैसों के प्यार नहीं है..........

 मुझसे पूछो क्या है पैसा

 सब बेकार यदि ना पैसा

 सपने जलकर खाक हुए हैं 

सांसे तार-तार रही है

 बिन पैसों के प्यार नहीं है .......

पैसा बड़ी बीमारी भारी

इससे घर रहती लाचारी 

बिकती इज्जत रोज भूख में

 इतना भी लाचार रही है

 बिन पैसों के प्यार नहीं है..........

बेटा ना कोई बेटी है 

घर में  कंगाली बैठी है

 टूटे कितने खून के रिश्ते

 कब रिश्तो में तार रही है

 बिन पैसों के प्यार नहीं है.........

 कला की कब कीमत बिन पैसा

 लोग कहे उसे ऐसा- वैसा

 आत्महत्या का ये है कारण

 रोज गरीबी मार रही है

 बिन पैसों के प्यार नहीं है .........

 हाय कहां से आया पैसा

 खूब नचाये सबको पैसा

 कोई बन गया खूनी- डाकू

 सब पर इसकी मार रही है

 बिन पैसों के प्यार नहीं है ........

जो पैसों का बना पुजारी

 वह मानवता का हत्यारी

 बुद्ध जैसे त्यागी नहीं मिलते

 नीयत सब की जार रही है

 बिन पैसों के प्यार नहीं है .......

माना पैसा बहुत जरूरी

 यह इंसा की है मजबूरी 

 पर मानवता बड़ी है सबसे 

जीने का आधार रही है

 बिन पैसों के प्यार नहीं है........

 मत पैसों से रिश्ते तौलों

 अपनों को बाहों में ले लो 

दौलत आनी जानी छाया 

ये हर वक्त खार रही है

 बिन पैसों के प्यार नहीं है.........

"सागर" पैसा बहुत जरूरी

बनने मत दो ये मजबूरी

लालच से बस पाप है होता

जैसा बोता - वैसा पाता

पैसा कोई हथियार नहीं है

बिन पैसों के प्यार नहीं है.........

माना घर में व्यवहार नहीं है

पर पैसा सरकार नहीं है

जीनें का आधार नहीं है

मन इतना लाचार नहीं है

खार है ये घर-बार नहीं है

पैसा चौकीदार नहीं है

पैसा मेरा प्यार नहीं है

पैसे बिन उद्धार नहीं है

फिर भी मेरा प्यार नहीं है

हां ये मेरा प्यार नहीं है।

हां ये मेरा प्यार नहीं है।।

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मूल गीतकार/ बेखौफ शायर

डॉ. नरेश कुमार "सागर"

हापुड़, उत्तर प्रदेश

06/02/2021.....9149087291

Tuesday, February 2, 2021

मुस्कुराती चिट्ठियां


ग़ज़ल
.... मुस्कुराती चिट्ठियां
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दिल जिगर से भी प्यारी, हैं तुम्हारी चिट्टियां।
 जान जाती लौट आती,पा तुम्हारी चिट्टियां।।

 घेर लेती है कभी जब, गम- ए- तन्हाई हमें।
 गुदगुदाती- खिलखिलाती, मुस्कुराती चिट्ठियां।।

 एक वो तस्वीर तेरी, देख जीतें हैं जिसे ।
पूछतीं है रोज हमसे, कैसी लगती चिट्टियां।।

 यादों की ताबीर इनमें, जीने की तासीर है।
 रुसवा जब करता जमाना, तब रिझाती चिट्ठियां ।।

बच्चों सी मासूम दिखती, मां के लगती प्यार सी।
 और सनम की बिंदिया जैसी, ये चमकती चिट्टियां।।

 चिट्ठियों का ये चलन, "सागर" खत्म ना हो कभी।
 लिख सके चिट्ठी ना जो, उनको चिढाती चिट्ठियां।।
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 मूल रचनाकार ....
बेखौफ शायर... डॉ.नरेश कुमार "सागर"
 हापुड़, उत्तर प्रदेश
9149087291

*धरती बाबा बिरसा मुंडा*

 ..........गीत *धरती बाबा बिरसा मुंडा* ================= अंग्रेजों को खूब डराया । जब जी चाहा इन्हें हराया ।। बड़े बहादुर बिरसा मुंडा , जीत क...