*बोल तिरंगा अब तो बोल*
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बोल तिरंगा अब तो बोल
अपने होठों को तो खोल
तेरे खातिर छोड़के सब कुछ
मैं तो गया बस तुझ में डोल
बोल तिरंगा ............
कैसा लगता है बोलो तो
तुझको मेरी मर्दानी
तुझपै निछावर मैंने कर दी
अपनी सारी जवानी
एक बार तो अपने मन से
मेरे भी मन को तो तोल
बोल तिरंगा ...........
सजी दुल्हनियां छोड़के आया
मां को रोता छोड़के आया
बहन की राखी रोती रह गई
भाई से भी मुंह मोड़ के आया
बापू का आते वक्त तो
बंद हो गया उसका बोल
बोल तिरंगा ................
तुझ पर निछावर मेरी दुनिया
देखी नहीं नन्ही सी गुड़िया
तेरे खातिर लड़ जाऊंगा
हंसते-हंसते मर जाऊंगा
अंत समय भी मेरे मुंह से
निकलेंगे बस तेरे बोल
बोल तिरंगा ...................
मुझसे लिपट जा मुझ में सिमट जा
मेरे बदन की चादर बन जा
कितने शहीद हुए तेरे खातिर
मैं भी खड़ा उस भीड़ में आखिर
हंसते-हंसते जां दे दूंगा
चाहे मेरी चाहत तौल
बोल तिरंगा .................
मैंने सरहद की मिट्टी को
चुम्मा है मां के चरणों सा
मेरे बदन में देश का जज्बा
कोंधे सूरज की किरणों सा
मर जाऊं तो सुन-ए- तिरंगा
पड़ने मत देना तू झोल
बोल तिरंगा .................
जाति धर्म कुर्बान है तुझ पर
तेरे बड़े एहसान है मुझ पर
दुश्मन तेरे आगे कांपे
मुंह की खाये जब भी झांके
"सागर" तेरा हुआ दीवाना
तेरी नजर में क्या है मौल
बोल तिरंगा अब तो बोल ।
बोल तिरंगा अब तो बोल ।।
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मूल गीतकार.... बेखौफ शायर
*डॉ. नरेश कुमार "सागर"*
हापुड़, उत्तर प्रदेश